बोनस इश्यू और स्टॉक स्प्लिट दोनों शेयरों की संख्या में वृद्धि करते हैं और शेयरों की कीमतों को घटाते हैं, जिससे वे अधिक सुलभ हो जाते हैं। इनका फेस वैल्यू और कंपनी रिजर्व पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। अधिक जानने के लिए पढ़ें!
ज्ञात कॉर्पोरेट कार्यों में बोनस इश्यू और स्टॉक स्प्लिट कंपनियों द्वारा शेयरों की संख्या को बढ़ाने के लिए किए जाने वाले दो उपाय हैं। दोनों मामलों में, शेयरधारकों के शेयरों की संख्या को बिना किसी अतिरिक्त राशि के बढ़ा दिया जाएगा। तथापि, दोनों अवधारणाओं के उद्देश्य अलग-अलग हैं और यहां हम आपको इनके बीच के अंतर के बारे में बताने जा रहे हैं।
बोनस इश्यू क्या है?
बोनस इश्यू को पूंजीकरण इश्यू के रूप में भी जाना जाता है, बिना किसी लागत के मौजूदा शेयरधारकों को अतिरिक्त शेयर प्रदान करता है। जब कंपनियों का लाभप्रद टर्नओवर होता है तो अपने शेयरधारकों को पुरस्कार देने के लिए इस विधि का उपयोग करते हैं। यह कंपनी के रिजर्व से जारी किया जाता है।
बोनस शेयर निवेशक के शेयरों के अनुपात में वितरित किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई फर्म 5:1 बोनस शेयर प्रदान करता है, तो इसका अर्थ है कि आपके डीमैट खाते में धारित प्रत्येक 5 शेयरों के लिए (रिकॉर्ड तिथि के अनुसार), शेयरधारक को 1 बोनस शेयर मिलेगा। इसलिए, यदि आप उस फर्म के 100 शेयर धारण करते हैं, तो आपको 20 बोनस शेयर मिलेंगे।
किसी कंपनी के मौजूदा शेयरधारक के शेयरों पर प्रभाव को स्पष्ट करने के लिए, आइए हम विभिन्न अनुपातों का बोनस इश्यू मान लें – 1:5, 1:1 और 5:1
बोनस जारी करने से पहले | बोनस जारी होने के बाद | ||||||||
बोनस इश्यू | धारित शेयरों की संख्या | शेयर प्राइस | फेस वैल्यू | निवेश का मूल्य | धारित शेयरों की संख्या | शेयर प्राइस | फेस वैल्यू | निवेश का मूल्य | |
5:1 | 100 | 10 | 10 | 1000 | 120 | 8.333 | 10 | 1000 | |
1:1 | 100 | 100 | 10 | 10000 | 200 | 50 | 10 | 10000 | |
1:5 | 2000 | 20 | 10 | 40000 | 12000 | 3.33 | 10 | 40000 |
बोनस शेयर जारी करके, प्रत्येक शेयर के मूल्य में आनुपातिक कमी के साथ बकाया शेयरों की संख्या बढ़ जाती है और यह सुनिश्चित करती है कि ऊपर दी गई तालिका में दिखाई गई बाजार पूंजीकरण में कोई बदलाव न हो। यद्यपि, शेयरों की फेस वैल्यू में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
कई कंपनियां बोनस इश्यू को लाभांश के एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में देखती हैं। बोनस इश्यू का भुगतान कंपनी के निवल रिजर्व से शेयरधारकों को किया जाता है जबकि लाभांश का भुगतान निवल लाभ से किया जाता है। लाभांश का भुगतान नकद के रूप में शेयरधारकों को किया जाता है जो आपके पंजीकृत बैंक खाते (जो डीमैट अकाउंट से लिंक होता है) में क्रेडिट हो जाता है जबकि बोनस इश्यू का अतिरिक्त शेयरों के रूप में भुगतान किया जाता है। इसके परिणामस्वरूप, इसके स्टॉक का मूल्य बढ़ जाता है, जिससे यह निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक हो जाता है।
बोनस शेयर के लाभ और हानि
बोनस शेयर के लाभ:
कर लाभ: निवेशकों को बोनस शेयरों से लाभ होता है क्योंकि उन्हें प्राप्त होने पर इन शेयरों पर कर का भुगतान करने से छूट प्राप्त होती है। यह विशेष रूप से लंबी अवधि के शेयरधारकों को आकर्षक लग सकता है क्योंकि वे तत्काल कर देयताओं के बिना अपने निवेश को बढ़ाने का लक्ष्य रखते हैं।
निवेश वृद्धि: दीर्घकालिक निवेशकों के लिए बोनस शेयर किसी कंपनी में अपनी होल्डिंग को बढ़ाने का प्रभावी तरीका है। यह विशेष तौर पर उन लोगों के लिए लाभदायक होता है जो समय के साथ अपने निवेश में वृद्धि करना चाहते हैं।
निवेशकों के विश्वास को बढ़ावा देता है: बोनस शेयर जारी करने से कंपनी के संचालन और संभावनाओं में निवेशकों का विश्वास बढ़ सकता है। यह दर्शाता है कि कंपनी अपने नकद रिजर्व को व्यावसायिक विस्तार हेतु पुनः निवेश कर रही है, जिससे एक सकारात्मक दृष्टिकोण का संकेत मिलता है।
उच्च भावी लाभांश: बोनस इश्यू के माध्यम से बड़ी संख्या में शेयर रखने का अर्थ है कि निवेशकों को भविष्य में अधिक लाभांश प्राप्त हो सकता है, बशर्ते कंपनी लाभांश घोषित करे।
सकारात्मक बाजार संकेत: बोनस शेयर जारी करने से अक्सर बाजार में एक सकारात्मक संदेश जाता है, जो दीर्घकालिक विकास तथा स्थिरता के प्रति कंपनी की प्रतिबद्धता को प्रतिबिंबित करता है। इससे कंपनी की प्रतिष्ठा में वृद्धि हो सकती है तथा ज्यादा निवेशक आकर्षित हो सकते हैं।
बोनस शेयरों के नुकसान:
अस्थिरता में वृद्धि: बोनस शेयरों की घोषणा और जारी करने से मार्केट में अनुमान और धारणा में वृद्धि हो सकती है, जो स्टॉक की कीमतों में अधिक अस्थिरता लाने में योगदान कर सकता है।
पूंजी आबंटन: अतिरिक्त शेयरों का आबंटन करने के लिए कंपनी को अपने नकदी भंडारों का अधिक उपयोग करना पड़ता है। इस पूंजी आवंटन को शेयरधारकों के बीच लाभांश के रूप में वितरित किया जा सकता है।
अपरिवर्तित लाभः शेयरों की संख्या में वृद्धि के बावजूद कंपनी का समग्र लाभ अपरिवर्तित रहता है। इसके परिणामस्वरूप प्रति शेयर (ईपीएस) आय में आनुपातिक रूप से कमी होती है, जो सभी निवेशकों के लिए अनुकूल नहीं हो सकती।
स्टॉक स्प्लिट क्या है?
स्टॉक स्प्लिट एक ऐसी कार्रवाई है जिसके द्वारा एक कंपनी अपने मौजूदा शेयरों को कई शेयरों में विभाजित करती है ताकि शेयरों की तरलता में वृद्धि हो सके। शेयर की कीमत ज्यादा हो जाने पर सामान्य तौर पर विभाजन किया जाता है, जब निवेशकों के लिए इसे प्राप्त करना महंगा हो जाता है। शेयरों की संख्या बढ़ने के कारण शेयर की कीमत घट जाती है। स्टॉक विभाजन के बाद फर्म की मार्केट कैप और प्रत्येक शेयरधारक के निवेश का मूल्य अपरिवर्तित रहता है।
बोनस इश्यू की तरह, कीमत अनुपात से कम हो जाती है. उदाहरण के लिए,
विभाजन से पहले | विभाजन के बाद | |||||||
स्टॉक स्प्लिट | धारित शेयरों की संख्या | शेयर प्राइस | फेस वैल्यू | निवेश का मूल्य | धारित शेयरों की संख्या | शेयर प्राइस | फेस वैल्यू | निवेश का मूल्य |
1:2 | 10 | 900 | 10 | 9000 | 20 | 450 | 5 | 9000 |
1:5 | 10 | 900 | 10 | 9000 | 50 | 180 | 2 | 9000 |
यद्यपि, शेयर की फेस वैल्यू स्टॉक विभाजन के साथ बदल जाती है। यदि किसी स्टॉक की फेस वैल्यू रु. 10 है, और स्टॉक को अनुपात 1:2 में विभाजित किया जाता है, तो शेयर स्प्लिट के बाद स्टॉक की फेस वैल्यू रु. 5 हो जाती है।
स्टॉक स्प्लिट के लाभ और नुकसान
स्टॉक स्प्लिट के लाभ:
बकाया शेयरों में वृद्धि: स्टॉक स्प्लिट बकाया शेयरों की कुल संख्या में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि करता है, यद्यपि कंपनी का बाजार पूंजीकरण समान रहता है। इससे कंपनी का समग्र मूल्य नहीं बदलता बल्कि स्टॉक को अधिक सुलभ बनाता है।
शेयर प्राइस में कमी: स्टॉक स्प्लिट, शेयर की कीमत को आनुपातिक रूप से कम करके व्यक्तिगत निवेशकों के लिए स्टॉक को अधिक किफायती बनाता है। इससे निवेशकों की एक विस्तृत शृंखला आकर्षित हो सकती है, जो पहले ज्यादा मूल्य होने के कारण नहीं ले पाए हों।
प्राप्यता में वृद्धि: कम कीमत पर उपलब्ध ज्यादा शेयरों को खरीदना और बेचना आसान होता है। इस बढ़ी हुई लिक्विडिटी से खुदरा और संस्थागत निवेशकों के लिए शेयर ज्यादा आकर्षक हो जाता है।
सरलीकृत पोर्टफोलियो प्रबंधनः शेयर की कम कीमत और अधिक मात्रा होने से निवेशकों के लिए अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाना और उसे पुनर्संतुलित करना आसान हो जाता है। कम कीमत पर अधिक शेयर निवेश के प्रबंधन में लचीलापन प्रदान करते हैं।
विलय से बचना: नए शेयर जारी करने के बजाय कंपनियां स्टॉक स्प्लिट के माध्यम से शेयरों की संख्या बढ़ा सकती हैं। यह रणनीति स्टॉक का विलय करने से रोकती है और मौजूदा शेयरधारकों के स्वामित्व के प्रतिशत को बनाए रखने में मदद करती है।
स्टॉक स्प्लिट के नुकसान:
लागत और विनियामक अनुपालन: स्टॉक स्प्लिट करने में काफी व्यय होता है और कानूनी तथा विनियामक आवश्यकताओं का पालन करना होता है। यह कंपनी के लिए रिसोर्स-इंटेंसिव प्रक्रिया हो सकती है।
कंपनी मूल्य पर कोई प्रभाव नहीं: स्टॉक स्प्लिट कंपनी की मूल स्थिति को प्रभावित नहीं करता है। यह किसी प्रकार का अंतर्निहित मूल्य नहीं जोड़ता है तथा यह शेयरों की संख्या और उनकी कीमत के लिए केवल एक लेखाकरण समायोजन होता है।
अस्थायित्व बढ़ाने की क्षमता: स्प्लिट के बाद नए, निम्न शेयर मूल्य से ज्यादा निवेशक आकर्षित हो सकते हैं, जिससे स्टॉक की उपलब्धता में वृद्धि हो सकती है। इस प्रवाह से अस्थिरता में वृद्धि हो सकती है क्योंकि ज्यादा निवेशकों द्वारा स्टॉक की खरीद-बिक्री की जाती है।
बोनस इश्यू और स्टॉक स्प्लिट के बीच अंतर
आधार | बोनस इश्यू | स्टॉक स्प्लिट |
अर्थ | वर्तमान शेयरधारकों को दिया गया अतिरिक्त शेयर | कंपनी के बकाया शेयरों को कई शेयरों में विभाजित करना |
फेस वैल्यू | कोई बदलाव नहीं | अनुपात के अनुसार कम होता है |
तर्कसंगतता | रिजर्व और सरप्लस का वितरण | शेयरों की लिक्विडिटी को बढ़ाता है |
शेयर कैपिटल और रिजर्व | शेयर पूंजी बढ़ जाती है लेकिन रिजर्व कम हो जाता है | कोई बदलाव नहीं |
बोनस इश्यू और स्टॉक स्प्लिट दोनों ही शेयरों की संख्या बढ़ाकर तथा शेयरों की कीमतों को कम करके खुदरा भागीदारी को आकर्षित करने के प्रभावी तरीके हैं। दोनों मामलों में मौजूदा शेयरधारकों को बिना किसी अतिरिक्त राशि का भुगतान किए उनके शेयरों की संख्या में वृद्धि कर दी जाती है। फिर भी, उनके तर्क में भिन्नता होती है, जो फेस वैल्यू और कंपनी के रिजर्व तथा अधिशेष को प्रभावित करते हैं, जैसा कि ऊपर दिखाई देता है। बोनस इश्यू या स्टॉक स्प्लिट, दोनों ही स्थितियों में शेयरों की संख्या बढ़ जाती है तथा मौजूदा शेयरधारकों के निवेश के मूल्य और कंपनी के बाजार पूंजीकरण में परिवर्तन किए बिना शेयर की कीमत घट जाती है।
निष्कर्ष
बोनस इश्यू और स्टॉक स्प्लिट के बीच अंतर को समझ जाने से निवेशकों को समझ-बूझ कर निर्णय लेने में मदद मिलती है। दोनों तरीके शेयरों की संख्या में वृद्धि करते हैं और शेयरों की कीमतों को कम करते हैं, जिससे वे निवेशकों के लिए अधिक सुलभ हो जाते हैं। यद्यपि, फेस वैल्यू और कंपनी रिज़र्व पर उनके प्रभाव में अंतर होता है। आज ही अपनी निवेश यात्रा शुरू करके इन अवसरों का लाभ उठाएं। एंजल वन के साथ डीमैट खाता खोलें और अपने पोर्टफोलियो को बढ़ाने के लिए संसाधन सम्पदा और उपकरणों तक पहुँच प्राप्त करें। अभी साइन-अप करें!