डिविडेंड – Dividends
कंपनी को एक साल में जो मुनाफा होता है उसको शेयरधारकों में बाँटा जाता है और इसे ही डिविडेंड कहते हैं। कंपनी अपने शेयरधारकों को डिविडेंड देती हैं। डिविडेंड प्रति शेयर के आधार पर दिया जाता है।
हर साल डिविडेंड देना कंपनी के लिए ज़रूरी नहीं होता। अगर कंपनी को लगता है कि साल का मुनाफाडिविडेंड के रूप में बाँटने की जगह उस पैसे का इस्तेमाल नए प्रॉजेक्ट और बेहतर भविष्य के लिए करना चाहिए तो कंपनी ऐसा कर सकती है।
डिविडेंड हमेशा मुनाफे में से ही नहीं दिया जाता। कई बार कंपनी को मुनाफा नहीं होता लेकिन उसके पासकाफी नकद पड़ा होता है। ऐसी स्थिति में कंपनी उस नकद में से भी डिविडेंड दे सकती है।
कभी कभी डिविडेंड देना कंपनी के लिए सबसे सही कदम होता है। जब कंपनी के पास कारोबार के विस्तारका कोई सही रास्ता नहीं होता और कंपनी के पास नकदी रकम पड़ी होती है, ऐसे में डिविडेंड दे कर शेयरधारकों को पुरस्कृत करना अच्छा होता है। इससे शेयरधारकों में कंपनी पर भरोसा बढ़ता है।
बोनस इश्यू
बोनस इश्यू एक तरह का स्टॉक डिविडेंड है जो कंपनी अपने शेयरधारकों को पुरस्कृत करने के लिए देती है। इसमें कंपनी डिविडेंड की तरह पैसे नहीं बल्कि शेयर देती है। ये शेयर कंपनी अपने रिजर्व से जारी करती है। बोनस शेयर मुफ्त में दिए जाते हैं और ये शेयरधारकों को इस आधार पर दिए जाते हैं कि उनके पास कंपनी के कितने शेयर मौजूद हैं। बोनस शेयर आमतौर पर एक खास अनुपात में जारी किए जाते हैं जैसे 1:1, 2:1, 3:1 आदि।
अगर अनुपात 2:1 है तो शेयरधारक को हर एक शेयर के बदले में दो और शेयर मिलते हैं। मतलब कि अगर शेयरधारक के पास 100 शेयर हैं तो उसे 200 शेयर और मिलेंगे और उसके पास कुल 300 शेयर हो जाएंगे। इससे उसके पास शेयर तो बढ़ जाते हैं लेकिन उसकी निवेश की कीमत नहीं बढ़ती।
स्टॉक स्प्लिट (Stock Split) शेयर स्प्लिट यानी शेयर का हिस्सों में बंटना बाजार की एक आम घटना है। इसमें एक शेयर कुछ शेयरों में बदल जाता है। इसमें भी बोनस की तरह शेयरों की संख्या बढ़ जाती है लेकिन निवेश की कीमत और मार्केट कैपिटलाइजेशन नहीं बदलता। स्टॉक स्प्लिट शेयर के फेस वैल्यू से जुड़ी होती है। जैसे मान लीजिए शेयर की फेस वैल्यू 10 रुपये है और 1:2 के अनुपात में शेयर स्प्लिट होता है तो शेयर की फेस वैल्यू 5 रुपये हो जाएगी और अगर आपके पास एक शेयर था तो अब आपके पास दो शेयर हो जाएंगे। इस सारणी से आपको ये बात और साफ हो जाएगी।
बोनस इश्यू की तरह ही स्टॉक स्प्लिट का इस्तेमाल भी और निवेशकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए होता है।
राइट्स इश्यू
कंपनियां राइट्स इश्यू का इस्तेमाल पूंजी जुटाने के लिए करती हैं। अंतर बस इतना है कि जहाँ पब्लिक इश्यू नए निवेशक लाता है वहीं राइट्स इश्यू में मौजूदा शेयरधारकों से ही पैसा जुटाया जाता है। एक तरह से आप इसे कुछ खास लोगों (शेयरधारकों) के लिए लाया गया पब्लिक इश्यू मान सकते हैं। राइट्स इश्यू का मतलब होता है कि कंपनी कुछ नया काम करने जा रही है।
एक खास बात ये कि राइट्स इश्यू में शेयर बाजार भाव से नीचे मिलते हैं। वैसे निवेशकों को केवल शेयर की कीमत पर मिल रही छूट नहीं देखनी चाहिए। ये बोनस शेयर नहीं है यहाँ आप शेयर के लिए पैसे दे रहे हैं और इसीलिए आपको पैसे तभी लगाने चाहिए जब आप कंपनी के भविष्य को ले कर संतुष्ट हों।
शेयर बाय बैक (Buyback of Shares)
बाय बैक में कंपनी अपने शेयर बाजार से खुद खरीदती है। इसे कंपनी के खुद में निवेश के तौर पर देखा जा सकता है। बाय बैक से बाजार में कंपनी के शेयरों की संख्या कम हो जाती है। इसे कारपोरेट फेरबदल का भी एक तरीका माना जाता है। बाय बैक की और भी बहुत सारी वजहें हो सकती हैं..
1. प्रति शेयर मुनाफा ज्यादा बढ़ाना
2. कंपनी में प्रमोटर का हिस्सा बढ़ाना
3. किसी और के टेक ओवर यानी कब्जा करने से बचना
4. कंपनी को ले कर प्रमोटर के आत्मविश्वास को दिखाना
5. शेयर कीमत में आ रही गिरावट को रोकना
बायबैक कंपनी के आत्मविश्वास को दिखाता है इसलिए इसकी घोषणा से शेयर की कीमत ऊपर जाती है।